महेश अपनी किरयाने की दुकान पर उस शराबी के खरीदे सामान के दाम को अपने कैलकुलेटर पर जोड़ ही रहा था।
तब तक वह शराबी अपनी लड़खड़ाते जुबान से बोला,"सात सौ सैंतीस रुपये! "
महेश ने उसकी तरफ देखा और उसे बहुत आश्चर्य हुआ। और सोचने लगा कि आज कुछ ज्यादा पी ली है।
वो आधे होश में था और उसके लिए हुए छोटे मोटे सामान की संख्या लगभग पंद्रह थी जिसे उसने इतनी शीघ्र जोड़ दिया जब कि महेश अपने केलकूलेटर पर उँगली चलाकर भी इतनी जल्दी नहीं जोड़ सका था।
उस पर उस शराबी ने इतनी आसानी से हिसाब लगा लिया। वह उसे गलत लगा
और महेश को हँसी आ गई और उसने एकबार फिर से दाम जोड़ कर देखा तो सात सौ सैंतीस ही निकला।
उसी समय वहाँ सामान खरीदने एक लगभग पच्चीस साल की बेहद आधुनिक लड़की आई ।और उस फटेहाल शराबी को गौर से देखने लगी ।
इस बात में भी महेश को आश्चर्य ही लगा कि उसमें ऐसी देखने वाली कौन सी बात है ? यह शराबी है। ऐसे लोग इसी तरह सड़कौ पर घूमते है।
वो शराबी बिना उसकी तरफ देखे बढ़ने ही वाला था कि
"शायद। आप मैथ्स वाले सक्सैना सर हैं ना ?" उस लड़की ने प्रश्न किया।
"हाँ.. मगर तुम कौन हो? "
उस लड़की ने झुक कर उस शराबी के पैर छू लिए।
"मैं मोनिका हूँ सर..यही पास के झुगी में रहती थी और आपसे ट्यूशन पढ़ा करती थी। आपने मेरी ज़िंदगी बदल दी आपकी बदोंलत आज मै बहुत सुखी हूँ। "
"लेकिन आपने खुद का ये क्या हाल बना रखा है सर.. कितने दुबले हो गए हैं आप को क्या हुआ ?"पहचान में ही नहीं आ रहे है? और आप यह सब क्या करने लगे हो?
वह शराबी अब उससे नज़रे चुरा रहा था । क्यौकि उसके हाथ में शराब की बोतल जो थी। वह बिना कुछ बोले वहाँ से जाने लगा। क्यौकि उसके पास इसका जबाब नही था। उसे अपनी पत्नी व बेटा की याद आगयी और आँखें लाल होगयी।
लड़की ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोली," आन्टी आपको समझाती नही है और आपका बेटा भी कुछ नही बोलता है।"
उस शराबी की आँखों में आँसू उतर आएं और वह बोला," अब वह दोनों इस दुनियाँ मे नही रहे । उन दोनों को मेने अपनी आँखों के सामने दम तोड़ते देखा है उन्हें, उस एक्सीडेंट का मंजर मेरी आँखों से जाता नही है !"
नशे से हुई उन लाल आँखों मे महेश को एक पिता और एक पति का दर्द बहता नज़र आया।
लड़की ने उसे वही मेरे दुकान के आगे रखे बेंच पर बिठा लिया।
"आपको इस हाल में देख क्या वो खुश होंगे सर! जानती हूँ उनकी जगह कोई नहीं ले सकता पर क्या मैं आपकी बेटी जैसी नही हूँ आपने मेरे लिए इतना कुछ किया था तब मै ऐसे समय में आपकी सहायता नही करसकती हूँ ".
परन्तु वह शराबी उस लड़की का हाथ झटक कर बोला,"नहीं.. इस दुनिया में अब मेरा कोई अपना नही हो सकता है।जो अपने थे वही छोड़कर चलेगये।
और वह इतना कहकर अपनी शराब की बोतल का ढक्कन खोलने लगा इससे पहले की महेश उसे अपने दुकान के सामने पीने से रोकता वह लड़की बोली " आपकी मर्जी सर मैं जारही हूँ। परन्तु आपने कभी सोचा है कि वह बहुत रो रहे होंगे आपको देख कर...
वो सिर्फ उस दिन नहीं बल्की रोज आपको इस हाल में देख मरते होंगे काश....की आप पहले की तरह मुझ जैसे बच्चों की ज़िंदगी में खुशियां लाते तो आपको उन बच्चों में आपका बेटा और उनकी सफलताओं में आपकी पत्नी दिखाई देती। "
लड़की ने बहूत मुश्किल से कुछ ही कदम बढाये थे कि वह बोले," मोनिका तुम ठीक कह रही हो रूक जाओ बेटी तुम आज से मेरी बेटी जैसी नहीं अपितु मेरी बेटी ही हो।
वो लड़की मुस्कुराते हुए वापस आ रही थी और वो अपने हाथों में लिए शराब को वहीं जमीन पर उड़ेल रहा था...
महेश ने रोका नहीं.. बह जाने दिया उस बुराई को और खुद के आँसू को भी।
जिदंगी मे कभी कभी हमें ऐसे लोगों से भी हमदर्दी करनी चाहिए, उनकी मदद करनी चाहिए जोकि वक्त की मार के मारे है हमें उनको देखकर हसना नही चाहिए।
इन्हें बस एक साथ की जरूरत होती है वो जादुई शब्द है "मै हूँ ना!"
दोस्तों ये वो जादुई शब्द है जो सांसो को संजीवनी दे देते है आशा है आप मेरी इस छोटी सी मगर दिल को छू लेने वाली बात का मतलब समझ गए होंगे!
आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना
नरेश शर्मा " पचौरी "
Abhinav ji
18-Nov-2022 09:05 AM
Very nice👍
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Gunjan Kamal
18-Nov-2022 08:51 AM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Pranali shrivastava
17-Nov-2022 07:40 PM
शानदार
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